Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो बैठो तो, लिपटकर बैठो

 

जो बैठो तो,  लिपटकर बैठो

 बैठो तो  कुछ  हटकर बैठो


यूँ  पलटपलटकर देखती हो क्या

बैठना  है  तो घूँघट उलटकर बैठो


ऐसे  भी  यहजगह  नहीं  अलग

बैठने  का ,बैठना है ,सिमटकर बैठो


रेत की तरह निकली जा रही जिंदगी

कुछ  करना  हैतो  झटकर बैठो


हमें क्या,तुम यहाँ बैठो या वहाँ बैठो

मगर  जहाँभी  बैठो , डटकर बैठो

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