Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जो सुनना चाहते हो, दास्तां हमारी

 

जो सुनना चाहते हो, दास्तां हमारी तबाही की

तो  सुनो  कहानी उस शाखे-गुल- कलाई1 की


फ़ंसाकर अपने  जुल्फ़ में  उसने मेरे दिल को

उम्र भर बहलाया,अब  बात करती है रिहाई की


कहती  है, जिंदगी  के वस्ल2 में अब वो मज़ा 

रहा  नहीं, आने  दो  मज़ा  अब  जुदाई  की


ख़ुदा,दुश्मन को भी न ऐसा काफ़िर सनम देना

तुमको   है   वास्ता  , मेरी  किब्रियाई3  की


देखते  ही  गैर को लेने लगती है अँगराई वह 

क्या-क्या  हकीकत  बयां करूँ उस बेहयाई की


मेरे सामने  , मेरी  बुराई  करती  और  मुद्दा

रखती  है, हमारे  पिछले जनम की लड़ाई की  



  1. सुन्दर बाँह 2. मिलन 3.पवित्रता                    


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ