कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो
पत्थर को फ़ूल में बदलकर तो देखो
है वादे-बहारी,रंगे चमन बहुत ही अच्छा
कुछ दूर तक तुम टहलकर तो देखो
वृथा न जायेगी, दो बूँद आँसू तुम्हारा
शहीदों के नाम,आँखें सजलकर तो देखो
लोग बदलेंगे, दुनिया बदलेगी, बदल रहे
चाँद-तारे, अपनी बात पहलकर तो देखो
फ़ुर्सत के दिन बहुत काम आयेंगे,कभी
मेरे शेर को गज़ल में बदलकर तो देखो
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY