डा० श्रीमती तारा सिंह
कभी हुई जो तुमसे मुलाकात
करेंगे हम हर वो बात
जो जुबां पर आकर लौट गई
जो सालती रहती दिन औ रात
पूछेंगे तुमसे, क्या खता हुई हमसे
जो मिली है हमें ,ऐसी मकाफ़ात1
तुम्हारे जहां में कहीं अमां2 न मिली
हर तदबीर को,तकदीर ने दिया मात
आज शामे—गम यह है,रब तो समझा
नहीं, तुम भी न समझे मेरी बात
1. सजा 2.पनाह
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