Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कबूल नहीं,हम क्या करें

 


अब  तारे-जमीं लगते नहीं हँसी, हम क्या करें

हर  पल, रुलाती तसवीर तुम्हारी,हम क्या करें


उतरी  है  बहार  गुलशन में,गुल है भरा हुआ

हमें  कोई  गुल  लुभाता  नहीं ,हम क्या करें


देखा है जब से तुम्हारी जफ़ा,हमारी नजरों को

हर  शब  पड़ता  क्षार  दिखाई, हम क्या करें


किसी  तरह  तनहा  दिन  कट  जाता मगर

रात   वैरन   कटती  नहीं , हम  क्या  करें


चाहती  हूँ, पलकों पर उठा लूँ सौ बार तुमको

शबनम बन कोई बिखरता नहीं, हम क्या करें


खड़े  हैं, दीद हसरत की निगाहों में मगर खुदा 

को  हमारी  इबादत  कबूल नहीं,हम क्या करें

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