Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कदम राहें मंजिल की पाते नहीं

 

कदम    राहें   मंजिल की  पाते   नहीं

तुमको  अपने  वादे  याद आते नहीं


निगाहों में है अर्जुन का तीर,निशाना 

मीन  की  पुतलियों  पर लगाते नहीं


बदलता जा  रहा जहाँ में कारवां

तुम कदम कारवां के साथ बढ़ाते नहीं


हाथ की रेखा, किस्मत, नहीं बदलती

जो  तूफ़ां को पलकों से उठाते नहीं


गर  तुम  मिलने के वादे किये होते

रात हम ,पाँव में मेहंदी लगाते नहीं


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