कैसे उजड़ गई वह दुनिया मेरी, जिसे मैंने
तंग-दस्ती1 में, खूने जिगर से सजाया था
जबां जीवन-प्यास से, सूख रहती थी मगर
दिल मेरा जिस्त2 का मजा पाया था
वादे-सुबह3 घर के चौकठ पर शबनम की
मोती रख जाती थी,शोख ने दर खड़काया था
शाम होते-होते सिमट गई वो सारे रस्ते,जिसके
हिज्र में तनहाई ने मुझसे मुझे मिलवाया था
जिंदगी भर मैं उन बातों को समझ न सकी
जिन बातों को मैंने, औरों को समझाया था
1.गरीबी 2. जिंदगी 3. प्रात:कालीन हवा
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