Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

खुदा ढूँढते हो तुम

 

 
मुझ पत्त्थर दिल इन्सान में, वफा ढूँढते हो तुम
खामोश मकबरे    में,    खुदा  ढूँढते   हो   तुम
 
गरीब  की   मौत पर शोक नहीं मनाये जाते
उनकी   लाशों के लिए  कफन  ढूँढते  हो तुम
 
गड़े  मुर्दों  को आज क्यों उखाड़ रहे हो तुम
उनमें  अपनी  दुआ  का  असर ढूँढते  हो तुम
 
सदा से  गरीब का  खून  अमीर  पीता   आया
अब  उनके  लहू में  पिता को ढूँढते हो  तुम
 
अंतिम समय में खाक भी खुद के संग न होगी
व्यर्थ   साड़ी,  गाड़ी,   बंगला   ढूँढते  हो     तुम
 
सूरज   की   तपिस   बड़ी   तेज  होती जा रही है
कोई घनी छाया  को क्यों  नहीं  ढूँढते हो तुम
 
Dr. Srimati Tara Singh

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ