किसने तोड़ा है तुम्हारा दीर्घ विश्वास
आओ मेरे प्रियवर ! मेरे जिवन की बहार
किस स्मृति की विस्मृति ने किया है
तुम्हारे हृदय पर इतना गहरा घाव
जिसकी पीड़ा रिस -रिस कर अश्रुजल
बनकर , तुम्हारे दृगों से निकल जा रही है
फिर भी तुम अपने हृदय नाद को
जग कोलाहल के अगम समुद्र में डुबो
देने का , कर रहे हो असफल प्रयास
किस निर्मम बंधन में तुम बंधे हुए हो
किसकी दुख गाथा पर जलाते हो अपना
हृदय रक्त, किस निष्ठुर ने तोड़ा है,तुम्हारे
दीर्घ प्यार का विश्वास , जो निःस्वर गृढ , जीर्ण
दर्द तुम्हारा, नवनीत तुल्य हो उठा है साकार
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