Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किस्मत हम पे रोती है, हम किस्मत पर रोते हैं

 

किस्मत  हम  पे  रोती  है, हम  किस्मत  पर  रोते  हैं

फ़िर  भी  जिंदगी  के  सफ़र में, हम साथ फ़िरा करते हैं


कभी उसका हाल मेरे जैसा,कभी मेरा उसके जैसा कभी वह

हमारे  होशो-खिरद1  का  शिकार,कभी हम उसका करते हैं


उसके  कूचे  में  कोई  शोर  या  कयामत का जिक्र नहीं

होता ,  मगर   हंगामें ,  आठो   पहर  हुआ  करते  हैं


जिंदगी  ने  सुलह  की बात उससे कई बार की, मगर जो

न  हो  तबियते काबिल, कोई तरबियत2 से कब संवरते हैं


अब  तो  बहरे-जहाँ3  में  कश्ती-ए-उम्र  हर  क्षण  तबाह

रहती  है, कब  टूटकर  लगेगा किनारा,यही सोचा करते हैं



  1. चेतना और बुद्धि 2.शिक्षा 3.दुनिया रूपी समुद्र

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हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ