कोई रातों को देकर आवाज, मुझको बुलाता है
सौ मुल्कों में फ़िरा,कहीं न मिली वफ़ा,कहता है
कभी सोज-ए-सीना1 दाग दिखाकर , खुद को
दर्दे-गम में घायल होने की बात करता है
कभी कहता है, अपनी ही फ़िक्र में शब-ए-वस्ल2
गुजर गई, अब जिक्रे ज़माल3 से जी डरता है
कोई उसे समझाये कैसे,गुजरा वक्त कभी लौटकर
नहीं आता है, क्यों वह तकरारे-दिल4 करता है
जिस इश्के-गुनाह को याद कर,आँखों में खूने-दिल
भर आता है, उसे वह याद ही क्योंकर करता है
1.सीने की जलन 2.मिलन की रात 3.सौन्दर्य
4. दिल से तकरार
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