कोई तो दर्द - मंद1, दिले - नासबूर2 बनकर
मेरे साथ था, जो मैं अब तक मरा नहीं
मगर मुझमें वह हौसला-ए-तर्के-वफ़ा3 रहा नहीं
जो बताऊँ, क्यों यह चिरागे-सहर4 बुझा नहीं
मैं नहीं चाहता,किसी निगाहे-शौक5को रुसवा करूँ
गुलशन - परस्त हूँ, काँटों से निबाह किया नहीं
जिसके गमे-फ़िराक6 में, मैं रोज जीता-मरता हूँ
उसकी आशिकी में जलकर देखा, दिल जला नहीं
बनती नहीं बात मुसीबत को कहे बगैर ,पर कैसे
कह दूँ, उस बेवफ़ा नजर का तीर कभी सहा नहीं
1.रहमदिल 2.हृदय का हितैषी 3.प्रेम त्यागने का
साहस 4.सुबह का दीया 5. इच्छा 6. जुदाई का गम
डॉ० श्रीमती तारा सिंह
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