माँ
पूजा-पाठ का हँसी उड़ाने वाला आज का भोला, बचपन से जड़वादी नहीं था| वह तो पूरे निष्ठावान और ईश्वर भक्त था| दादी के साथ नित्य उठकर, गंगा-स्नान कर मंदिर-मंदिर चक्कर लगाना उसकी नित्य की दिनचर्या थी| जब वह दिन के दश बजे, दादी के साथ घर लौटता था, तो उसके पूरे वदन पर चन्दन लपेटा रहता था, जिसे देखकर पड़ोस के बच्चे उसका मजाक उड़ाया करते थे| कहते थे, ‘इस उम्र में तुमको इतना शृंगार क्यों करना पड़ता है? क्या आगे चलकर तपस्वी बनना है या भगवान से कुछ मानत है, क्योंकि सुना है, धर्म, स्वार्थ के बल टिका रहता है, हवस ही मनुष्य के मन और बुद्धि को इतना संस्कार दे सकता है|’ उत्तर में भोला बस इतना बोलकर चुप हो जाता था, कि सच पूछो, तो गणेश, इतना करने के बाद भी, मेरे चित्त की शांति दिनों-दिन उड़ती मुझसे दूर चली जा रही है| मुझे कुछ भी समझ नहीं आता, कि मैं यह सब करना क्यों पसंद करता हूँ? मेरे मन की कमजोरी को देवालय में पहुँचकर बल क्यों मिलता है?
गणेश, भोला के सवालों के समर्थन में कहता था, वो इसलिए कि ईश्वर ने ही तो हम सबको बनाया है, वो अंतर्यामी है| सबके दिल का हाल जानता है, नहीं तो शबरी का प्रेम देखकर स्वयं राम उसके घर आकर, उसकी मनोकामना पूरी क्यों करते? एक दिन तुम्हारी भी मनोकामना पूरी होगी, मगर तुम्हारी उलझन क्या है, यह तो बताओ?
भोला रुआँसा होकर बोला, ‘तुम्हीं बताओ, जिसे मैंने कभी नहीं देखा, न छुआ, न ही उसके होने का एहसास किया; फिर क्यों वह मेरी साँसों की डोर संग बंधी, मेरी जिंदगी की रक्षा करती रहती है? कौन है वह, जिसे ढूंढने मैं मंदिर-मंदिर का चक्कर काटता हूँ?’
भोला की बात सुनकर गणेश हँस पड़ा, बोला, ‘अरे बेवकूफ! यही तो ईश्वर है, जिसे हमने कभी नहीं देखा, पर महसूस हर क्षण होता है; दिल कहता है, वो है, तभी हम हैं|’
भोला, चुपचाप खड़ा, अपने आँसुओं के वेग को सारी शक्ति से दबाते हुए कहा, ‘तुम ठीक कहते हो, लेकिन ईश्वर आकाश से सीधा जमीं पर मुझे नहीं लाकर तो खड़ा किया होगा; कोई तो माध्यम रहा होगा मुझे यहाँ लाने का, जिससे होकर मैं यहाँ आया?’
गणेश झटपट बोल उठा, ‘है न, वो माँ, जिसने हमें जनम दिया, पाला-पोषा, बड़ा किया| मेरे लिए रात जगी, दिन खड़ी रही; माँ, ईश्वर का ही तो रूप है|’
भोला कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘मगर मेरी तो माँ नहीं है, मैंने तो माँ को कभी नहीं देखा, फिर क्यों उसकी तुलना ईश्वर से कर मैं उसके लिए तड़पता रहता हूँ? मंदिर-मंदिर जाकर, वहाँ बैठी उस देवी में अपनी माँ को ढूंढता हूँ?’
भोला बोला, ‘वो इसलिए कि, तुम्हारी अश्रुपूरित आँखें, तुम्हारी माँ के प्रेम और वियोग में सदा ही एक सम्बंध बनाए रखती है|’
गणेश की स्नेहमयी बातें सुनकर, भोला का मन इस कदर उल्लसित हो उठा, मानो अँधेरे में टटोलते हुए उसे वांछित वास्तु मिल गई हो|
एक दिन भोला ने देखा कि उसके पड़ोस में रह रहे, मीनू और सोनू, दोनों भाई-बहन हँस-हँस कर, उछल-उछल कर, उसे दिखा-दिखा कर मिठाइयाँ खा रहे हैं| यह देखकर भोला का जी ऐंठकर रह जाता था; जब वह खुद को नहीं सँभाल सका, तब उसके पास गया, बोला, ‘थोड़ी मिठाइयाँ मुझे भी दो न!’
इस पर सोनू ने कहा, ‘नहीं, तुम अपनी माँ से जाकर माँगो; ये मिठाइयाँ मेरी माँ ने मुझे बाजार से लाकर दिया है|’
सोनू की बात सुनकर भोला की आँखें भर आईं| उसने विनीत भाव से कहा, ‘मेरी माँ नहीं है, जैसे ही मैं दुनिया में आया, धरती पर कदम रखा; मेरी माँ दुनिया छोड़ दी| न उसने मुझे देखा, न मैंने उसे देखा, लेकिन मेरी दादी कहती है, वह बड़ी मृदुभाषिणी थी| नित मंदिर जाया करती थी, और वहीँ बैठकर प्यारी आत्माओं को ईश्वर-प्रेम के प्याले पिलाती थी|’
भोला की बातें सुनकर सभी बच्चे एक साथ हँस पड़े, बोले, ‘तब मंदिर में जाता क्यों नहीं, वहीँ अमृत के प्याले के साथ मिठाइयाँ भी मिलेगा!’
भोला ने एक ठंढी साँस ली, आँखों से आँसू टप-टप कर जमीन पर गिर पड़े, रोते हुए बोला, ‘मंदिर-मंदिर का चक्कर काट-काटकर खुद को आज मिट्टी में मिला दिया|’
बच्चों ने ठिठोली करते हुए कहा, ‘मुबारक हो तुमको, तुम कैसे इंसान हो, ईश्वर की चाह में खुद को मिटाकर अपने को हेय समझते हो?’
गणेश से अब सब्र न हो सका, उसने कहा, ‘मैं शर्मिन्दा हूँ, अपने कथन पर, मुझे माफ़ कर दो| ऐसे भी, मैं ईश्वर के प्रेम की गहराई से अपरिचित हूँ|’
इस अंतिम विचार से गणेश के ह्रदय में, ईश्वर के प्रति इतना नफ़रत भर गया, कि वह जब भी देखता, हाथों में पीतल का कमंडल लिए, शिव-शिव, हर-हर, गंगे-गंगे, नारायण-नारायण कहते कुछ लोग जा रहे हैं, वह उनके समीप जाता, पूछता, क्या चाचा! क्या ता-उम्र निकल गई, राम-राम रटते, कुछ हासिल हुआ; देखना एक दिन मेरी तरह तुम भी थक-हारकर घर बैठ जावोगे और तब तुम भी मेरे जैसा मंदिर से कतराने लगोगे|
गंगा किनारे जाता, जिसके नाम उच्चारण से जन्मों के पाप धुल जाते हैं, जिसकी लहरों में डुबकी लगाना और जिसकी गोद में मरना हर हिंदू सबसे बड़ा पुण्य समझता है; वहां पहुँचकर गंगा-स्नान करने वालों से भी पूछता, ‘आप तो अब बूढ़े हो चले हो, चाचा! नित्य यहाँ आते हो; क्या गर्मी, क्या सर्दी, कभी यहाँ की परिक्रमा करना नहीं छोड़ते, तो क्या गंगा से तुमको यह आश्वासन प्राप्त हो गया, कि जीवन भर चाहे जहाँ भी रहो, मौत के समय तुम मेरे किनारे रहोगे, और मेरी गोद में मरोगे?’ लोग गणेश को पागल समझकर, राश्ता काटकर निकल जाते, तब गणेश अपनी भौं का पानी पौंछकर, ठठाकर हँस पड़ता|
आज उक्त घटना को बरसों बीत गए, गणेश बचपन के मर्मघाटी वेदनाओं को भूलने लगा; भूले क्यों नहीं? मदिरा भरा यौवन कब किसी को स्थिर रहने दिया, जो गणेश रह पाता, उसके ह्रदय-आकाश पर का काला बादल, जो बचपन से, उसके मन-पटल को अंधेरा किये रखता था, धीरे-धीरे छटने लगा, तब उसमें उसने देखा, ‘माँ, एक अक्षर व दो मात्राओं का मेल है, जिसका अर्थ, म से मन, व, अ की मात्रा से आवाज अतएव मन की आवाज है माँ; इसलिए माँ तो मेरे दिल में है, उसे आँख बंद कर देखने की जरूरत है| वह पास न होकर भी, हर पल मेरे साथ है|’ यह एक अनूठा रिश्ता है| इस रिश्ते में स्वार्थ नहीं होता, केवल और केवल त्याग रहता है| यही कारण है कि माँ मुझे जनम देते वख्त जब उसे अपनी जान त्यागने की शर्त विधाता ने लगाईं, वह क्षण भर के लिए भी नहीं हिचकिचाई, अन्यथा वह कह सकती थी, ’ डॉ० बच्चे को मरने दो, मुझे बचा लो|’आज उस स्नेह, त्याग और सहनशीलता की देवी को ऋण, आभार, कृतज्ञता जैसे शब्दों से नवाजकर मैं छोटा नहीं करना चाहता| जिसका अंश हूँ, उसका ऋण कैसे चुकाऊँ? उसके एहसान की अदायगी का मन, जिंदगी को और उलझा देता है| पृथ्वी पर मुझे लाने के लिए खुद असीम वेदना में तड़प-तड़पकर दुनिया को अलविदा कह दी, पर पल भर के लिए भी उसने मुझे अभिशाप नहीं किया| उस बेहोशी के पल जो उसने मुझे अमृत के दो बूंदें पिलाई, जिनसे मेरी कोमलता आज भी पोषित है, उसे अपनी कृतज्ञता कैसे प्रकट करूँ? उसके लिए बस इतना ही कहूँगा, माँ, ईश्वर ने तुम्हें सृजन शक्ति देकर एक विलक्षण व्यवस्था का भागीदार बनाया| एक अघोषित, अव्यक्त व्यवस्था, जिसका पालन दुनिया की हर माँ करती है| खुद्नसीब है वो जिसे माँ की खिदमत करने का मौक़ा मिलता है| मैं भी कम खुशकिस्मत नहीं हूँ, जो तुम जैसी माँ की कोख से मैंने जनम लिया| माँ, तुम तो हर क्षण, हर पल जिंदगी की साँस बनकर मेरे साथ हो| तुम्हारे व्रत, उपवास, आशीर्वाद के दुआओं का ही असर है, माँ, कि मैं आज एक इंसान के शरीर में इस धरती पर जनम लिया|
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