Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मगर तब इतना कातिल न था

 

तुम्हारे  गालों  पे  तिल  पहले  भी था

मगर   तब   इतना   कातिल  न  था


ये    आज    इसे   क्या   हो   गया

जालिम   तो   था , जाहिल   न   था


पूछता  था  हाल- ए-दिल मेरा, जब  मैं

किस्सा-ए-दिल  बताने  के काबिल न था


बहरे- जहां1 में, तबाह  कश्ती-ए-उम्र2  के

भंवर बहुत थे, कोई दामने-साहिल3 न था


बेताबी-ए-दिल ले गई मुझको तेरे कूचे4में 

मन   मेरा   इसमें   शामिल   न  था



1. संसार रूपी समुद्र 2. जीवन की नैया 

   3. आँचल का सहारा  4. गली

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