Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मैं अपने हाथों में गुलाब लिये फ़िरता हूँ

 

मैं  अपने हाथों  में गुलाब  लिये फ़िरता हूँ

तन  पिंजरे में  दिल बेताब लिये फ़िरता हूँ

 

मिल  जाये  कहींमेरे  दिल   की   रानी

खुली  आँखों  में  ख्वाब  लिये  फ़िरता  हूँ

 

टकराये  कभी सय्यारे ,तेज गर्दिशे-दौरों में

आँखों  में अश्रु  का सैलाब  लिये फ़िरता हूँ

 

कैद है जिसमें बदनसीब मोहब्बत की बे-रुखी

कहानी ,मैं  वो  किताब  लिये  फ़िरता   हूँ

 

जमाना  दम  साधे  बैठा है जिस सवाल पर

मैं  उस  सवाल का  जवाब  लिये फ़िरता हूँ

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ