मैँ जो भी हूँ, जैसा भी हूँ , तुम्हारा हूँ
मैं रात ही नहीं, दिन का भी मारा हूँ
न करो दूर अपनी नजरों से तुम हमको
मैं अपने भी दिल के सहारे से,बेसहारा हूँ
तुम लाख करो ना-ना , तुम्हारी झुकी नजरें
बता रहीं , मैं आज भी तुम्हारा हूँ
तुम बिन जिंदगी तो थी,मगर जिंदगी नहीं थी
बड़ी मुश्किल से गमे जिंदगी को संवारा हूँ
राह मिलती नहीं बहरे-बस्ती1 की,जाऊँ तो
कहाँ जाऊँ , मैं जिंदगी से भी हारा हूँ
1. जीवन रूपी समुद्र .
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY