Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैँ जो भी हूँ, जैसा भी हूँ , तुम्हारा हूँ

 


मैँ जो भी हूँ, जैसा भी हूँ , तुम्हारा हूँ
मैं रात ही नहीं, दिन का भी मारा हूँ

 

न करो दूर अपनी नजरों से तुम हमको
मैं अपने भी दिल के सहारे से,बेसहारा हूँ

 

तुम लाख करो ना-ना , तुम्हारी झुकी नजरें
बता रहीं , मैं आज भी तुम्हारा हूँ

 

तुम बिन जिंदगी तो थी,मगर जिंदगी नहीं थी
बड़ी मुश्किल से गमे जिंदगी को संवारा हूँ

 

राह मिलती नहीं बहरे-बस्ती1 की,जाऊँ तो
कहाँ जाऊँ , मैं जिंदगी से भी हारा हूँ



1. जीवन रूपी समुद्र .

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