Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं नहीं रह सकता पड़ा हमेशा तुम्हारे दर

 

मैं नहीं रह सकता पड़ा हमेशा तुम्हारे दर
आशना1 कोई नहीं, कौन लेता किसकी खबर

 

मैं क्यों तुम्हारा पाँव चूमूँ, मेरी तरह तुम भी
एक इन्सान हो, तुम नहीं कोई प्याला–ओ-सागर

 

मिलते ही नज़र ,हमसे मुँह फ़ेर लेते हो,आखिर
किस बात में समझते हो मुझको खुद से कमतर

 

मेरे दिल की बात जो जानता मेरा ईश्वर
अब तक बदल गया नहीं होता मेरा मुकद्दर

 

माशूका से मिली दाग, दिल पर,लगती प्यारी
बशर्ते कि वह दाग जख़्म से हो बेहतर



1. मित्र

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