Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ बीत जायेंगे तुम्हारे बचे–खुचे दिन चार

 

माँ बीत जायेंगे तुम्हारे बचे–खुचे दिन चार



कभी जो कहता  था,माँ तुम जो मेरे पास

नहीं  होती हो, तो  रात  हो जाती पहाड़

तुम्हीं  मेरी  बैत-उल्‍-हरम हो, जमाने में

तुम-सा  नहीं  कोई दूसरा, रू-दादे-नशात

माँ  तुम  जो  मेरे  पास नहीं  होती हो

तब  रात  कटती नहीं, हो  जाती  पहाड़


आज  उसी बेटे  का सात  समुंदर से आया है तार

पढकर    माँ   का   आँचल  हुआ   तार - तार

लिखा   है,   सुनने   में   आया   है  आजकल

तुम्हारा, स्वास्थ्य   रहता  नहीं  कुछ  ठीक -ठाक

सर्दी - खांसी   बनी   रहती,  जाता  नहीं  बुखार

घर की दीवारें गंदी रहतीं,फ़ेंकती हो तुम थूक-खखार

जिससे पत्नी मेरी लाचार जीती, बच्चे रहते ननिहाल


इसलिए सोच  रहा मैं, देश लौटकर सबसे पहले तुमको

पहुँचा   दूँ , मथुरा  ,  काशी , वृन्दावन   या  प्रयाग

दिन-ब-दिन तुम्हारे पाँव की कँपकँपी भी बढती जा रही

आँखों   की  रोशनी  भी   घटती  जा  रही  लगातार

ऐसे  में घर  के लोग, कैसे  जीयें, जीना  हुआ  दुश्वार



माँ  जीवन  रण  तुम  अब  हार  चुकी   हो

छोड़  चुका  है एकाकी  भी अब, तुम्हारा साथ

जब तक तुम शत मोह-जाल से नहीं निकलोगी

घेरे  रहेंगे तुमको, ऐसे ही दुख के विपुल व्याल

अंधकार  के दृढ कर  में बंधा जा  रहा है अब

तुम्हारा  जर्जर तन, बिखरती जा रही नि:श्वास

प्रयागराज  मॆं तुमको  तुम्हारे हम-उम्र मिलेंगे

स्वर्ग –  धरा  की  बातें  करते  बीत  जायेंगे

तुम्हारे  जीवन  के  बचे – खुचे   दिन  चार


माँ   मुझे  पता है, आज  भी  अपने  आँचल में

तुम बचाकर रखी हो मेरे लिए,स्नेह का दूध सँभाल

मगर,तुम नहीं जानती,मैं पीता नहीं अब बासी दूध

सजाता  नहीं , बासी  फ़ूलों  से घर, रखता  नहीं

अतीत   की    बीती    बातॊं     को     याद


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