डा० श्रीमती तारा सिंह
माना कि तेरे दीद1 के काबिल, नहीं हूँ मैं
तू जिसे चाहे, उनमें शामिल नहीं हूँ मैं
तूने जिस दिल से किया था अपने
जी का करार, वो अजीजे दिल नहीं हूँ मैं
मगर कभी हवा-ए-दहर2 जो दिया फ़ैसला
तो सुनना, तेरे बहरे-मोहब्बत3 का साहिल हूँ मैं
तेरा यह ख्याल यूँ ही नहीं है सनम कि किस्मत
से वही मिलेगा ,जिस इनाम के काबिल हूँ मैं
मगर मैं नहीं,तेरे महफ़िल की आलमे-तस्वीर4जो
रकीब5 करे खिदमत, इतना जाहिल नहीं हूँ मैं
1. दर्शन 2. दुनिया की हवा 3.समुद्र सा गहरा प्यार
4. चित्र की भाँति 5. दुश्मन
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