मज़हब , भाषा की बात न कर
भाई , भाई को आघात न कर
जिंदगी है चार दिनों की
पाँचवें दिन की बात न कर
कुछ नहीं संग जायगा
धन- दौलत की बात न कर
ऊपरवाले से कुछ तो डर
मानवता पर घात न कर
दुश्मनी ही बची रहे
ऐसी तो पैदा हालात न कर
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मज़हब , भाषा की बात न कर
भाई , भाई को आघात न कर
जिंदगी है चार दिनों की
पाँचवें दिन की बात न कर
कुछ नहीं संग जायगा
धन- दौलत की बात न कर
ऊपरवाले से कुछ तो डर
मानवता पर घात न कर
दुश्मनी ही बची रहे
ऐसी तो पैदा हालात न कर
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