महँगाई
-----डॉ० श्रीमती तारा सिंह, नवी मुम्बई
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश की अन्यान्य समस्याओं में महँगाई की समस्या सबसे ऊपर है; सामान्य हो या विशेष, सभी इससे त्रस्त हैं । सभी लोग अपनी-अपनी जगह इसकी मार से परेशान होकर तड़प रहे हैं । जीवनोपयोगी और दैनिक उपभोग की वस्तुओं से लेकर ऐश्वर्य की वस्तुएँ तक पर इसकी काली छाया ,लगभग समान रूप से पड़ी है । यदि कोई सौदा इस कुटिल के हाथों से बच पाई है, तो वह है इन्सान, जिसकी जान अभी तक सस्ती है; इतनी सस्ती कि सौ-दो सौ में भी बिक जाती है । इनके रंगों में महँगी वस्तुओं से बनी ,खून की कीमत कुछ भी नहीं है । यह एक ऐसी बेइलाज बीमारी बनकर जनता को मारे जा रही है, जिसमें चेहरे पर सिलवटें और झुर्रियाँ असमय आती हैं । उसके बाद कमर सीधी नहीं होती, बाद लोग मर जाते हैं ।
आश्चर्य है ,कि एक ओर तो यह महँगाई ,आम लोगो के घर क्या, बच्चे तक बचने के लिए विवश करते हैं,लेकिन दूसरी तरफ़ यही महँगाई ,नये-नय्र धनाढ्यों को जनम देती है ; जो अपने दोनों हाथों धन बटोरकर अपने सात पुस्तों के ऐश-आराम को इकट्ठा कर रही है । जमीन पर की बात छोड़िये, ये पैसेवाले तो चन्द्रमा पर अब अपना महल बनवाने जा रहे हैं । वाह री महँगाई ! हमारे देश को आजाद हुए, 66 साल हो गये । इस बीच महँगाई को निमंत्रण करने के लिए हजारों –लाखों बड़े-बड़े नारेबाजियाँ हुईं । फ़ल, वही ढाक के तीन पात, महँगाई की घटना तो दूर की बात और बढ़ गई । हम यह भी नहीं कह सकते,कि सरकार की तरफ़ से महँगाई को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये; परन्तु महँगाई के जड़ को काटने के बजाय, उसके रोकथाम पर अधिक बल दिया गया , जिसके कारण महँगाई बढ़ती चली गई । आज तो महँगाई घने वट-वृक्ष का रूप ले चुकी है, जिसका पत्ता-पत्ता विषैला है, जिसकी हवा में असमय की मौत छुपी है ।
दिनों दिन महँगाई के कारणों और उसके रोकथाम के उपायों पर, जनता, जननेता, सामाजिक कार्यकर्ता अपने-अपने दृष्टिकोण से सोचते रहे हैं; फ़िर भी भारत में अपना रंग जमा चुकी इस महँगाई को भारत की धरती से बाहर नहीं निकाला जा सका । यह कहना गलत है कि आर्थिक दृष्टि से विकसित होनेवाले देश में महँगाई रहती है ; बल्कि मेरी समझ से इसका कारण है, क्षमता के अनुपात में उत्पादन की कमी । सोने-चाँदी की बात करना आज के युग में, आम जनता के लिए मजाक होगा । यह तो औसत आदमी के लिए लोमड़ी के खट्टे अंगूर बनकर रह गये हैं ।
जिस देश में हर मंत्री, हर अधिकारी के साथ-साथ देश की नीतियाँ बदलती हैं, वहाँ का यही हाल रहता है । आज कपड़े- मकान की बात लोग कैसे करें, जहाँ पेट भरने की बात नहीं सोच सकते । प्याज को ही लीजिये , पाँच रुपये किलो मिलनेवाला प्याज,आज 90/- और 100/- रुपये किलो बिक रहा है । यही हालत चीनी, गुड़, सब्जी जैसी चीजें,अब आकाश कुसुम सी लगने लगी है। ऐसे में आदमी के स्वभाव में गुणात्मक मिठास कहाँ से आयगा । चारो ओर फ़ैल रही आपा-धापी ,रिश्वत, लूट-खसोट, भ्रष्टाचार,व्यभिचार, यही तो महँगाई की जननी है, जिसके आँचल में यह पलती-बढ़ती है ।
आज देश का अधिकांश उद्योग प्राइवेट सेक्टर में है । कच्चे माल पर मूल्य नियंत्रण लादते समय प्राइवेट सेक्टर के लाभ की बात देखना आवश्यक होता है । बावजूद फ़िर से ये अपने लाभांश में वृद्धि करने के लिए, दाम बढ़ा लेते हैं,जिसके कारण ,जिस वस्तु का दाम 20/- रुपये होने चाहिए,उनकी लालच की चाहत में 25/- में बेचते हैं । बढ़ती महँगाई का यह भी एक बहुत बड़ा कारण है ।
प्राकृतिक आपदाएँ भी इस महँगी को फ़लने –फ़ूलने में कम साथ नहीं देतीं, कभी अति वृष्टि तो कभी सूखा । प्रकृति का यह चक्कर प्राय: चलता रहता है । आज विग्यान के युग , कई उपाय संभव हुए हैं, लेकिन यह यथेष्ट नहीं है । इसलिए इसमें और विस्तार लाने की जरूरत है । आर्थिक विकास सम्बंधी कार्यनीतियों और योजनाओं को लागू करने में आपसी तालमेल का अभाव भी महँगाई का एक प्रमुख कारण है । इस प्रकार की अदूरदर्शिता अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी योजनाओं की उपलब्धि आम जनता तक नहीं पहुँच पाता, परिणाम स्वरूप महँगाई बढ़ जाती है । इसलिए राजनीतिक स्थिरता को दूर कर ,एक सही और संतुलित दृष्टिकोण बनाने की जरूरत है । अगर ऐसा नहीं होता है, तो आम आदमी महँगाई में पीसता जायगा । दिखावे के लिए सरकार चाहे जितनी योजनाएँ बना ले; रीजल्ट ’वही ढ़ाक के तीन पात’ ।
ऐसी भी बात नहीं है कि, इससे देश की महँगाई शत-प्रतिशत खतम हो जायगी ; लेकिन इस पर बहुत हद तक काबू पाया जा सकता है , इसके लिए बढ़ते जन-सैलाव को रोकना होगा । सरकारी नीति के तहत (कानून बनाकर) लोगों को बताना होगा । एक या दो बच्चे होते हैं अच्छे,अधिक बच्चों से घर की शांति नष्ट होती है तथा दो बच्चे वालों को ही लाभांश मिलेगा ; उसके तहत घर मिलेंगे । दूसरा सरकार , उत्पादन की योजना सही लाभ और समुचित वितरण को ध्यान में रखकर बना सकेगी । अखिल भारतीय लदान की समुचित व्यवस्था को और संग्रह तथा मुनाफ़ाखोरी ,को पकड़कर सख्त से सख्त सजा देने के लिए ठोस कदम उठाया जाय । इसके लिए प्रत्येक क्षेत्र में ईमानदार और सतर्क कर्मचारी की नियुक्ति होनी चाहिये , जो उत्पादक मूल्य और उपभोक्ता तक पहुँचने तक सही मूल्य का जायजा ले सके । कभी-कभी नेताओं का बेलगाम और स्वार्थप्रद भाषण से भी यह बात फ़ैल जाती है ,कि देश में किस चीज की कमी होने जा रही है । बस जमाखोर उन वस्तुओं को गोदामों में लाकर जमा करना शुरू कर देते हैं । इससे बाजार में चीजों की कमी हो जाती है; जो थोड़ा-बहुत उपलब्ध रहता है, लोग मुँहमांगा दाम देने को मजबूर हो जाते हैं । इस प्रवृति को उपभोक्ता आन्दोलन चलाकर निर्मूल किया जा सकता है ।
आज भारत के साथ-साथ सारे विश्व में जो महँगाई का गतिचक्र चल रहा है । इसका बहुत बड़ा कारण है, उर्जा के स्रोतों का रोज का रोज महँगा होते जाना,तेल के धनी देश , हर सप्ताह अपना दाम बढ़ाते हैं । इसका प्रभाव विश्व के सारे देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ती है । आवश्यक चीजों का उत्पादन और उसके ले जाने, ले आने वाला , साधन मूल्य बढ़ जाता है ; जिसके साथ महँगाई भी बढ़ जाती है। कुल मिलाकर महँगाई का कारण एक नहीं ,अनेक है:- दोषयुक्त वितरण व्यवस्था, शक्तिशाली राजनैतिकों द्वारा उत्पादकों से लाखों रुपये की वसूली, नेताओं द्वारा गलत ढंग के भाषण, साहूकारों की सरकारी दोस्ती । बजट के पूर्व वस्तुओं का बाजार से गायब होना,हर साल नये कर का बढ़ना, सरकार की लापरवाही, जनता की अदूरदर्शिता तथा अकर्मण्यता आदि ।
इस महँगाई से जो धनाढ्य हैं, या जो नेता हैं, उन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता । रोज लाखों रुपये की जहाँ हेरा-फ़ेरी होती है, वहाँ सौ की क्यों सोचें ;लेकिन औसत आदमी के लिए , यह नीम का काढ़ा है, पीते नहीं बनता और बिना पीये, जीते भी नहीं बनता । आखिर लोग, करे तो क्या करे ? खुद को आदमी जनम पर धिक्कारे ,या फ़िर इस महँगाई पर हाय-हाय करे !
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