Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा घर, तेरे घर से दूर तो था

 

मेरा  घर, तेरे  घर  से दूर तो था ,पर उतना दूर नहीं था 

मगर हमारे किस्मत में,दो दिलों का मिलना मंजूर नहीं था


साजे-सफ़र1 कंधे  पर कभी  बोझ नहीं होता, फ़िर भी करे 

बार-बार  शिकायत  मन, यह मेरे दिल को मंजूर नहीं था


दर्द  ने  मुझे  उठाया जब बज़्म2 से, तब  मैं  नसीब से

तो   दूर  था,  तेरे  आस्तान3  से  बहुत दूर  नहीं  था


तेरे  दिल  में  खारे-मुहब्बत4  का खालिस मेरे बाद भी

बरकरार रहा, तभी मेरे जनाज़े का हमराह दूर-दूर नहीं था


मेरे  दिल  की  तपिश  से  बिस्तर का हर तार खफ़ा था

जो  कराह उठा  रंज-ए-बालीन6 ,इसमें मेरा कसूर नहीं था




  1. सफ़र का सामान  2. दुनिया 3. चौकट 4. असफ़ल मुहब्बत की चुभन  5. चुभन 6. बालिश का गुस्सा

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