Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मेरे दिल में वो कतर है,जो

 


मेरे  दिल  में  वो  कतर1 है,जो तुफ़ां न हुआ

मैं  मेजबां2  तो  हुआ, कभी  मेहमां  न हुआ


रहा  हमेशा  दिल  बागो - सेहरा मेरा, मगर

कभी  इस  दिल  का  कोई  बागबां  न हुआ


आरजू - ए- वस्ल4  का  कत्ल  कई बार हुआ

मगर   फ़ित्ना - ए - अखिरुलेजमाँ5  न  हुआ


अपनी  दिले-वीरां  किसे  दिखलाऊँ, कैसे  कहूँ 

मेरा  साकी  बूढ़ा  तो हुआ, कभी जवां न हुआ


तकदीर से हार कर जो खुद को छोड़ दे खुदा के 

सहारे ,वह  दिलेजार6 है, हिम्मते-मरदां  न हुआ



1.कण 2. खातिर करनेवाला 3. उपवन जंगल 4.मिलन की प्रार्थना 5. संसार को समाप्त करने

 वाला झगड़ा 6. बीमार

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ