Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी उम्मीदों की शाख पर, अपनी चाहत का

 


मेरी उम्मीदों की  शाख  पर, अपनी  चाहत  का

बेकल - फ़ूल1, उम्रभरबे-आब2  विलखता रहा


कभी  सरश्के - गमसे, जख्मे  तमन्ना  को  धोया

कभी बे-अदब4  होने की सजा माँगता रहा


कभी  लब  से  जामे-मय को लगाकर शर्म-ओ-हिजाब

को  छोड़ा, कभी  जमीं-आसमां  का  फ़र्क बताता रहा


अजीब  नजरिया  है  दिल  की,जिसने उसे लूटा, उसी 

को  जख्मे-जिगर-उपचार  के  लिए ता-उम्र ढूँढ़ता रहा


कब बहारें-उम्रहुईं,कब खिजां नहीं मालूम,बदन में खून

 का एक कतरा भी नहीं था,मैं खून का दावा करता रहा


  1. बेचैन दिल 2. बिना पानी 3. पीड़ा के आँसू

4. दुष्ट  5. जीवन का वसंत

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