मेरी उम्मीदों की शाख पर, अपनी चाहत का
बेकल - फ़ूल1, उम्रभरबे-आब2 विलखता रहा
कभी सरश्के - गम3 से, जख्मे तमन्ना को धोया
कभी बे-अदब4 होने की सजा माँगता रहा
कभी लब से जामे-मय को लगाकर शर्म-ओ-हिजाब
को छोड़ा, कभी जमीं-आसमां का फ़र्क बताता रहा
अजीब नजरिया है दिल की,जिसने उसे लूटा, उसी
को जख्मे-जिगर-उपचार के लिए ता-उम्र ढूँढ़ता रहा
कब बहारें-उम्र5 हुईं,कब खिजां नहीं मालूम,बदन में खून
का एक कतरा भी नहीं था,मैं खून का दावा करता रहा
- बेचैन दिल 2. बिना पानी 3. पीड़ा के आँसू
4. दुष्ट 5. जीवन का वसंत
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