Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मुहब्बत के जज़्बे फ़ना हो गये

 



मुहब्बत के जज़्बे फ़ना हो गये
मेरे दोस्त क्या से तुम क्या हो गये

कभी आरजू थी, निकले दम तुम्हारा
मेरे दर के आगे, उसके क्या हो गये

कहते थे, लो आ गया कातिल तुम्हारा
दोनों हाथ बाँधे उनके क्या हो गये

वो बेबाकी के दिन, याद है मुझको
तुम्हारे मुहब्बत को क्या हो गये

जब भी मिले तुम, मिले मुसकुरा के
आज नजरों को ये क्या हो गये

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ