Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुझे मेरा गाँव याद आ गया

 


मुझे मेरा गाँव याद आ गया



सुनते ही कागा की कर्त्तव्य  पुकार दूर स्मृति के 

क्षितिज  मेंचित्रित-  सा हर्ष -शोक के बीते जहाँ 

वर्ष क्षण मुझे मेरा वह गाँव याद आ गया

युग-युग से लुंठित दलितक्षुधार्त्त,श्रम-बल से,जीवित

भू-खंड को  बिछाकर आकाश ओढनेवाला  सिहरकर 

अमर जीवन के कंपन से अपने आप खिलने वाला 

प्रभु-सेवक, मेरा गाँव का किसान याद  आ गया


जग कंदर्प से पोषित पदमर्दित भूख से पीड़ित 

सहिष्णु , धीर ,  अभय  चित्त ,  दादी याद  आ  गयी

दुख अग्नि के स्फुलिंगों  को चूमने वाला

खोलकर क्षितिज उर का वातायन,रंग-विरंगी आशा की

आभा को लाने वाला दादा याद आ गया



देखा जो घर के चौकठ को सूनातो कमजोर 

दुर्बल चपला -सी काँपतीछाया के पटल को

खोलकरभावों की गहराई को निखारने वाली

धरती के उर से प्रकाश को छीन कर संतान के

जीवन भविष्य के अंधियारे  में भरने वाली

अपनी मधुर वाणी से अंतर को झंकृत करती

आँखें नम, चलने से लाचारमाँ याद आ गई



घर के भीतर झाँकी तो , दुख लपटों में लिपटी

भू  पर  बिछे अंगारों पर कदम बढाती जीवन 

अरुणोदय को आँचल में लिए प्रतिमा - सी सुंदर 

सागर -सी गहरी आँखों वाली भाभी याद आ गयी

गोद में देखा  तोदीवार को चीरकर अपना स्वर 

आजमाने वाली,नन्हीं-सी जान गुड़िया याद  गयी


आँगन देखा तो तुलसी की गंध लिये 

पुरवैया याद  आ गयी चौपाल  में झाँका तो

टिम- टिम कर जल रहे दीपक की रोशनी में

गाँव के बड़े-बूढे पगुराती  गायें या आ गयी

कान लगाकर सुना तो मंदिर से अग-जग को

भिगोने पुजारिन  की    हिलोरें   याद    यीं

देखते – देखते , कितनेदीपबुझे आँधीमें

झाड़ी -झुरमुट में बताने संध्या पसर गयी


गाँव के बाहर  खेतॉं के  मुड़ेरों पर हल लिये बैठे

आकाश ताकते किसानों की मजबूरी याद आ गयी

माँ की ढीठ दुलार पिता की लाजवंती ,भोली

बुधिया  के   हाथों  की   सूखी   रोटी   याद  गयी

अमुआ की डाली सेलटका विहग नीड़ याद  गया

हर्ष-शोक बिताया मेरा बचपन जहाँ ,जिस माटी में 

खेलकर बड़ा हुआ,आज मुझे मेरागाँव याद आ गया

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