Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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न पूछो, तुम बिन

 

न पूछो, तुम बिन दिन हम कैसे गुजारे हैं
तुमको पाने की चाहत में, खौफ़ से हारे हैं

 

जब भी तुमसे मिलने का खयाल आया
तन्हाई के भंवर में, हाथ- पाँव मारे हैं

 

भला हो उस गम का,जो कभी साथ न छोड़ा
उसे पता था हम किस्मत के मारे हैं

 

मौजों को गोते खिलवाता साहिल से किनारा
कहने को वे जीते, एक दूजे के सहारे हैं

 

जिंदगी के चमन से जो एक बार चला जाता
फ़िर लौटकर कभी आती नहीं बहारें हैँ

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