न रहीम के , न राम के
तुम आदमी , किस काम के
दर्दे - जहाँ की बात नहीं, बात
करते केवल, मय- ए- खाम1 के
बेशर्मी तुम्हारी तब हद हो जाती
जब चाटते तुम दर्द-ए-तहजाम2 के
तुमको हो न हो, हमको है अजीज
कब्रे निशान अपने नाम के
जहाँ-ए-गुलिस्तां मुबारक हो तुमको
बुलबुल बिना मेरे ये किस काम के
1.कच्ची शराब 2.मदिरा के पात्र की तलछटी
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