कहना मुश्किल होगा, नाच रही तवायफ़ है,या मजबूरी है
किरणों के भी शजर सूखते हैं, समझना जरूरी है
गांधी का प्रतिरूप ,देश का मसीहा , अहिंसा का पुजारी
आज घर- घर जाकर खंजर बेच रहा , क्या मजबूरी है
पैसे- पैसे को लुटाकर, वतन की आन को बचानेवाला
आज लुटेरा बन देश को लूट रहा , क्या मजबूरी है
गाँव को छोड़कर शहर गया , आया न कभी लौटकर
पिता स्वर्गवासी हुए, बहन कुँवारी है , क्या मजबूरी है
जो कहते थे, तुम मेरी जिंदगी हो, तुम पर हमारी जान
कुरबान हैं,आज मेरी कुरबानी को घूम रहे,क्या मजबूरी है
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