Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नेकी क्या, मेरी बदी का जिक्र

 


नेकी क्या, मेरी बदी का जिक्र भी तुमको मंजूर नहीं
क्या मैं आदमी हूँ बुरा, या तुमसा नेक कोई दूर-दूर नहीं

 

चोट खाने का गम नहीं मुझको, मगर चोट का दर्द नासूर
बनकर ,जीवन भर मेरे साथ रहे ,यह मुझे मंजूर नहीं

 

मेरा दिल, तुम्हारे दिल के पास रह न सका,इसमें केवल
मेरे दिल का दोष है, तुम्हारे दिल का कोई कसूर नहीं

 

इश्क की दुनिया के दीवानों में,एक नाम मेरा भी हो,बस
तुमसे इतनी सी विनती थी , वह मुझे मंजूर नहीं

 

हुस्ने कातिल के हाथों,मरने से अच्छा है,अपना सीना खुद
चीर दूँ , ऐसे भी माशूक के हाथों मरने का दस्तूर नहीं

 

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