पंखहीन मनुज
मरण सेवित,घन घमंड उद्वेलित
धरा पर उतरने से पहले, मनुज
कहाँ सोचा था, वहाँ पहुँचकर
मन का विषाद लिये, पंखहीन
वृक्षपात सा , ऊपर की ओर
टकटकी लगाये खड़ा रहना होगा
वह तो सोचा था,मनुज जीवन का उद्देश्य
लक्ष्य की प्राप्ति होगी, जिसके लिये हमें
प्रगति दिशा की ओर, उड़ने पंख मिलेगा
ज्यों खग-वृंद पल में,अपना इंगित बदल
लेता, त्यों मैं भी,दुख अंधकार की आँधी
को विचरता देख , राह बदल दूँगा
जहाँ सपने खिलकर,साकार कुसुम हो जाते
जहाँ से पिछलकर गिरने के भय नहीं होते
कल्पना जहाँ पहुँच नहीं पाती , जहाँ
पहुँचकर यह भुवन, तुच्छ दिखाई पड़ता
वहाँ जाकर, वसंती वायु के मादक झकोरों
में रक्तलोचन श्वेत पारावत सा विचरूँगा
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