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प्राणों की यमुना उमड़ आती

 

’प्राणों की यमुना उमड़ आती”

                                                                                                     ---डा० श्रीमती तारा सिंह, नवी मुम्बई




आज  भी कर उस दिन को याद

प्राणों  की  यमुना  उमड़ आती

आँखों  से  होने  लगती बरसात

कैसे तरु–कुसुमों से लदी धरा पर

मंजरित  आम्र द्रुम की छाया में

हम- तुम  मिले  थे पहली  बार  


तुम चंचल- इन्दुमुखी, छ्लकता

मधुरस  गात लिये, अपने मृदु-

बाँहों  को मोड़ . उपादान किये

कहने  को  हमसे दूर खड़ी थी

पर  थी तुम, मेरे दिल के पास


हम  दोनों  के अधरों  के बीच, केवल

भय   तिमिर   की   एक  रेखा  थी

वह  भी सृष्टि के परिवर्तन के क्रम में

पल- पल  अपना  रूप बदल  रही थी

कभी  वह ,  आँखों  को  सुख  नक्षत्र

दीखती थी,कभी तपन चिह्न लगती थी




कभी   हम  दोनों  का   उर   कसक   ले

प्राची   के   प्रांगण  बीच , देखो  जल  रहे

दो दीप, कह  नियति  उड़ाती  थी   उपहास

कभी  कहती  थी ,कौन हो तुम एकाकी प्रेमी

मूक  अभिमानी, क्या  है  तुम्हारी  विवशता

जो आँखों से रस पीकर भी बताता नहीं स्वाद


क्या  तुम  सोच  रहे ,बर्फ़ से ढंकी इस

शीतल चोटी के भीतर क्या है ऐसी बात

जो  ज्वालामुखी  बन  फ़ूटती  जब यह

विश्व  क्या, तीनॊं  लोक हो जाता खाक


तो   सुनो,  छोड़ो  यह  सोचना, गगन  में

नतमस्तक  होकर  बैठे  ग्रह -गोलक  सभी

तुम्हारी   ही   तरह   सोच   रहे  वे  भी

तो  यह  है ,तुम्हारी कल्पना का क्षूद्र विचार

तुम्हीं कहो ऐसे में,कैसे तुम अपने यौवन की

अभिलाषा  के, उस  सुख  का करोगे सत्कार


जिसको  जीवन  भर  के  बल- वैभव से

सत्कृत  करते  आ रहे तुम, उसे छूने में 

हिचक , देखने  में  पलकें  झुक  जातीं

तृषित अधर उठा नहीं सकते,मधुरस भार

तब  कैसे  पूरी होगी तुम्हारे स्वागत के

कुमकुम  में, मकरंद  मिलाने  की आस


सम्पर्क – १५०२, सी क्वीन हेरिटेज़,प्लाट—६, सेक्टर—१८, सानपाड़ा, नवी मुम्बई—४००७०५,email : rajivsinghonline@hotmail.com; mob --09322991198

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