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Dr. Srimati Tara Singh
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प्रेत-यात्रा मार्ग

 

प्रेत-यात्रा मार्ग

             गरीबनाथ के सर पर काली पट्टी बंधा देख, उसके दादा रामदास समझ गए, कि गरीबनाथ के सर में दर्द है| तभी उसकी माँ ने तांत्रिक को बुलवाकर उसके सर पर काली पट्टी बंधवाई है| रामदास आवाज देकर गरीबनाथ को अपने पास बुलाया, और पूछा, ‘क्या तुम आज फिर उस नीम के पेड़ के नीचे खेलने गए थे?’ 

गरीबनाथ भयभीत हो धीमी आवाज में बोला, ‘हाँ गया था, लेकिन सच मानिये दादाजी, मैं जाना चाहता नहीं था|’

दादा रामदास, गुस्से से आगबबूला होते हुए बोले, ‘तब फिर गया क्यों?’ 

गरीबनाथ बोला, ‘वो कुंवर का छोटा बेटा, टूसना है न, जो मेरे साथ पढ़ता है, वही मुझे बुलाकर वहाँ खेलने ले गया|’ 

रामदास को गरीबनाथ पर क्रोध की जगह हँसी आ गई| उन्होंने गरीबनाथ को समझाते हुए कहा, ‘कोई तुम्हें कहीं जाने कहेगा, तो तुम वहाँ चले जाओगे?’ 

गरीबनाथ चुप रहा, रामदास ने उसके छोटे-छोटे गालों को सहलाते हुए कहा, ‘बेटा, तो मैं कहता हूँ, जा तुम अपनी छोटी बहन गुडिया को टुसना के घर सदा के लिए रख आ|’

गरीबनाथ कुछ देर तक विचारता रहा, सोचता रहा, फिर बोल उठा, ‘नहीं, मैं उसे नहीं दूँगा, वह मेरी बहन है|’ 

इस पर रामदास बोले, ‘लेकिन ऐसा नहीं करने पर टुसना तुमसे नाराज जो हो जायगा, क्या इसके लिए तैयार हो?’ 

गरीबनाथ हर्षाता हुआ बोला, ‘हाँ, मैं तैयार हूँ|’

दादा रामदास बोले, ‘ठीक है, तो अब से टुसना नाराज हो या खुश, उसकी परवाह तुम नहीं करोगे|’

गरीबनाथ कड़े शब्दों में कहा, ‘नहीं, कभी नहीं करूँगा, और अब से उसके बुलाये से कभी कहीं भी नहीं जाऊँगा|’

गरीबनाथ से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी, सुनकर दादा की आँखों से अनुराग टपक पड़ा| उनका एक-एक रोम पुलकित हो उठा| उन्होंने ईश्वर से कहा, ‘हे ईश्वर! तुम्हारा लाख-लाख शुक्र है|’

गरीबनाथ, कुछ देर बाद दादा के नजदीक गया और विनीत स्वर में पूछा, ‘लेकिन दादा जी, मैं वहाँ खेलने क्यों नहीं जाऊँ, यह तो आपने बताया ही नहीं|’

दादा, बिना किसी लागलपेट के बोले, ‘वहाँ प्रेत रहता है, जो मनुष्य को बीमार पड़ा देता है|’

गरीबनाथ आश्चर्यचकित हो पूछा, ‘ये प्रेत क्या है, कहाँ से आता है?’

रामदास, गरीबनाथ को समझाते हुए बोले, ‘आदमी मरने के बाद भूत बन जाता है, लेकिन अभी तुम बच्चे हो, तुम्हारे लिए और अधिक कुछ जानने की जरुरत नहीं है| बस, जब मैं नीम के पेड़ के नीचे खेलने से मना करता हूँ, तो तुम वहाँ नहीं जाओगे|’

गरीबदास, सर खुजलाते हुए बोला, ‘मत बताइये, मैं समझ गया, उधर से प्रेत आता-जाता है, क्योंकि वहाँ एक बोर्ड लगा हुआ है, ‘प्रेत-यात्रा मार्ग|’’

दादा हँसे और वाणी को विभूषित कर बोले, ‘बेटा, उधर से प्रेत नहीं, मरे हुए आदमी को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है| दूर काली माई के मन्दिर के पास एक नदी है, वहाँ श्मशान है; मरने के बाद घर वाले मृत शरीर को जिस रास्ते से ले जाकर उसकी अंत्येष्टि-क्रिया करते हैं, उसे ही प्रेत-यात्रा मार्ग कहा जाता है| मृत्युपरांत मृत-आत्मा, तब तक प्रेत बनकर भटकती रहती है, जब तक कि उसके पुत्र-पौत्रों द्वारा पिंडदान नहीं किया जाता है| इसलिए मृत्युपरांत दश दिनों तक पिंडदान आवश्यक बताया गया है| दशवें दिन पिंडदान के चार भाग होते हैं:- दो भाग मृतदेह को प्राप्त होते हैं, तीसरा हिस्सा यमदूत को प्राप्त होता है, और चौथा हिस्सा, पापात्मा रूप प्रेत का ग्रास बनता है| मृत शरीर के अंतिम संस्कार के उपरांत पिंडदान से प्रेत को हाथ के बराबर शरीर प्राप्त होता है| पिंड शरीर धारण कर ग्यारहवें व बारहवें दिन भोजन करता है और तेरहवें दिन यमदूत उसे पृथ्वी लोक से यमलोक लेकर चला जाता है|’

गरीबनाथ चुपचाप कहानी सुन रहा था, तभी दादा बोले, ‘ठीक है, अब तुम समझ गए होगे, प्रेत क्या होता है|’ 

मगर गरीबनाथ कब चुप रहनेवालों में से था, वह आगे जानने के लिए और अधिक उत्साहित हो उठा, बोला, ‘आप भी मरने के बाद प्रेत बनकर प्रेत-यात्रा मार्ग पर उछल-कूद मचायेंगे, तब तक, जब तक कि मैं आपका पिंडदान न कर दूँ|’

दादा बोले, ‘इसलिए पिंडदान करना भूलना मत, क्योंकि अनिष्ट शक्तियाँ, अधिकतर भूलोक पर ही निवास करती हैं, जहाँ वे मनुष्य को आवेशित करती हैं| इन अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व विभिन्न स्थानों पर होता है; जीवित और निर्जीव वस्तुओं में वे अपना केंद्र बना लेते हैं| ये काली शक्तियाँ साधारणत: मनुष्य-वृक्षों में (नीम, वट, इमली, पीपल, महुआ आदि के ऊपर) अपना अस्थाना बनाती हैं| ये शक्तियाँ मूलभूत वायुतत्व से बनने की वजह से इन्हें सूक्ष्म दृष्टि के बिना देखना संभव नहीं होता| कई बार अग्नि-संस्कार अच्छे ढ़ंग से नहीं किये जाने से भी मृत का देह इस परिसर में बार-बार दिखाई देता है| ऐसे स्थानों में जाने से अनेक लोगों को अस्वस्थ लगना, भारीपन-थकान आदि प्रतीत होता है; तथापि कभी-कभी थकान की वजह से भी होता है|’

दादा का बोलना बंद हुआ, अचानक गरीबनाथ रोने लगा| 

दादा ने गरीबनाथ को पुचकारते हुए, गोद में बिठाकर पूछा, ‘बेटा, तुम रोने क्यों लगे?’

गरीबनाथ रोते हुए बोला, ‘मुझे भी भूत ने पकड़ रखा है, इसलिए मेरे सर में इतना दर्द होता है|’

तभी गरीबनाथ के गुरूजी, शिवा सिंह जी आ गए| उन्होंने दादा से पूछा, ’गरीबनाथ क्यों रो रहा है?’

दादा ने क्रमश: नीम के पेड़ के नीचे खेलने तक की घटना बताई|

सुनकर गुरूजी ठहाके मारकर हँसने लगे, बोले, ‘गरीबनाथ चुप हो जाओ| आँसू पोछकर मेरे पास आओ; मैं बताता हूँ तुमको, भूत क्या होता है? पहले तुम इस जल रही बिजली-बत्ती को बंद करो| 

गरीबनाथ ने स्विच ऑफ़ कर दिया|

गुरूजी ने पूछा, ‘जो अभी तक रोशनी थी, वो कहाँ गई?’ 

गरीबनाथ ने रोते हुए कहा, ‘पता नहीं|’ 

गुरूजी हँसते हुए फिर बोले, ‘अब स्विच ऑन कर दो|’ स्विच ऑन करते ही अंधेरा ख़तम हो गया, लाईट जल गई| गरीबनाथ खिलखिलाकर कर हँस पड़ा|

गुरूजी पूछे, ‘तुम हँस क्यों रहे हो?’

गरीबनाथ ने कहा, ‘बल्ब तो तब भी था, जब मैंने बिजली का स्विच ऑफ़ किया, और अब भी है, लेकिन तब अंधेरा इसलिए था, कि उसमें इनर्जी नहीं थी| इनर्जी को कोई पकड़ नहीं सकता|’ गुरूजी बोले, ‘अरे गरीबनाथ, तुम तो बहुत होशियार बच्चा हो| ठीक इसी तरह, आदमी की आत्मा एक लाईट है, जब तक आदमी के शरीर में वह है, आदमी ज़िंदा है, और उसके निकलते ही आदमी निर्जीव हो जाता है| दरअसल यह भूत-प्रेत, सब आदमी का अंधविश्वास है| फिर भी, अभी तुम बच्चे हो, इसलिए सुनसान जगह पर तुमको नहीं जाना चाहिए, क्योंकि निर्जनता भी एक प्रकार का भूत है, जहाँ आदमी कभी-कभी इस प्रकार डर जाता है कि उसकी मौत भी हो सकती है| ऐसे में लोग कहते हैं, उसे भूत ने मार डाला; प्रेत ने पटक दिया, जिससे गिरकर उसका सर फट गया और उसकी मौत हो गई|’

 

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