Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रात भर जागे हैं,नींद आती नहीं

 

रात भर जागे हैं , नींद आती नहीं
काफ़िर के आँखों की शरारत जाती नहीं

 

क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
है याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं

 

आतिशे-आग1 में जल- जलकर दिल खाक हुआ
वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ2 आती नहीं

 

डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
मुहब्बत है , कि भरोसा दिलाती नहीं

 

शाखे-गुल3की तरह रह-रह के लचक जाती है् वो
उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं

 




1.इश्क की आग 2.जलने की गंध
3.डाली पर के फ़ूल

 

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