Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राह वही,राही बदल गये

 

राह वही, राही बदल गये
शोरिशे-तुफ़ां1 में साहिल2 बदल गये

 

मुकाबला दिल से आसान नहीं था
हम उसके साँचे में ढ़ल गये

 

बचे न जान सीने में, बहाकर
खून, दुनिया से कातिल निकल गये

 

बेखुदी में कदम बढ़ा ,हम चलते गये
जब होश आया, खुद संभल गये

 

वस्ल3 की आग लगी कुछ इस तरह
सीने में,बुझाने वाले भी साथ जल गये

 

 

Dr. Srimati Tara Singh

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