रूह1 कालिब2 में दो दिन का मेहमान है
कफ़स3 में ज्यों बंद शौके गुलिस्तान है
फ़िर क्यों लोग फ़िराके- यार4 में मर- मर के
जीते हैं, इतनी सी बात क्यों नहीं उन्हें मान है
कैसा गम, दरिया से कतरे की जुदाई का
जो आज जमीं है वही तो कल आसमान है
सैलाब की तरह हम आज आये, कल चले
यहाँ आदमी कफ़न पहना, मौत का मेहमान है
पीरी5 में नौजवानी से मिलने की तमन्ना रही
जब कि सीने में गमे- इश्क6 रहता जवान है
कालिबे-खाकी7,जेरे खाक8 में रहता कैसे कोई नहीं
जानता, आदमी क्यों बज्म से निकलने परेशान है
1. आत्मा 2. शरीर 3 .पिंजड़ा 4. प्रेमी का विरह
5. बुढ़ापा 6. प्रेमिका का इश्क 7. मिट्टी का शरीर 8. मिट्टी के नीचे
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