साकी, रकीब ढूँढ़ता है ,तेरे घर कापता, तेरा नाम लेकर
करता है अपने दर्दे-दिल की दवा, तेरे नाम का ज़ाम पीकर
कहता है, जिसके इंतजारे मुहब्बत में ढ़ली हमारी हयात1
की शाम, जिसने सजाया हमारे कफ़न को हमनाम देकर
उससे शिकवा–ए-मेहरो वफ़ा2हमने नहीं था किया,उसी ने कहा
ले गया मेरा दिल, कोई सुलताने-इश्क3 अपना सलाम देकर
मौत का वादा हमने नहीं था किया,जो बेवफ़ा कहलायें
हमारा जलता है कलेज़ा, जब बुलाता है उसे कोई नाम लेकर
हम बेदादे-इश्क4 से नहीं डरते, डरते हैं इस बात से, कि कहीं
हम चले न जायें गमखाने में, इश्क से नाकाम होकर
- जिंदगी 2. कृपा की शिकायत 3. प्रेम पुजारी
4. इश्क की बदनामी
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