Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साकी, रकीब ढूँढ़ता है

 

साकी,  रकीब ढूँढ़ता  है ,तेरे  घर  कापता, तेरा नाम लेकर

करता  है अपने दर्दे-दिल की दवा, तेरे नाम का ज़ाम पीकर


कहता  है, जिसके  इंतजारे  मुहब्बत  में ढ़ली हमारी हयात1 

की  शाम, जिसने  सजाया  हमारे  कफ़न को हमनाम देकर


उससे  शिकवा–ए-मेहरो वफ़ा2हमने नहीं था किया,उसी ने कहा

ले  गया  मेरा दिल, कोई सुलताने-इश्क3 अपना सलाम देकर


मौत  का  वादा  हमने  नहीं  था  किया,जो बेवफ़ा कहलायें 

हमारा जलता है कलेज़ा, जब बुलाता है उसे कोई नाम लेकर


हम बेदादे-इश्क4 से नहीं डरते, डरते हैं इस बात से, कि कहीं 

हम  चले  न  जायें  गमखाने  में, इश्क  से  नाकाम होकर



  1. जिंदगी 2. कृपा की शिकायत 3. प्रेम पुजारी 

4. इश्क की बदनामी       


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