Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साकी ! क्या कहा तुमने अपने दीवाने से

 


साकी ! क्या कहा तुमने अपने दीवाने से
मय उड़ी जा रही मेरे पैमाने से

 

ता उम्र मैंने बीमार मोहब्बत की दवा की
कहा न कभी सरगुजश्त अपना , जमाने से

 

फ़िर भी हर जबाँ पे मेरी रुसवाई के फ़साने रहे
क्या मिला छाती पर जराहत खाने से

 

साकी ! वादे बहार से दूर रखने का, यह तुम्हारा
अच्छा बहाना है,कौन रोका है,इस तरह तड़पाने से

 

इससे तो अच्छा था, फ़ूँक देती एक बार ही
क्या मिलेगा तुमको ठहर –ठहर के जिलाने से

 

देखना, निकल पड़ेंगे आँसू तुम्हारे भी, जब तुम
ढूँढ़ोगी , हम दीवानों को किसी बहाने से

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