Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साकिया, उठा परदा,फ़िर तू उसी अंदाज से

 

साकिया, उठा परदा,फ़िर तू उसी अंदाज से
और कर ले आँखें चार, इस तीरंदाज से

 

जमाना पहले सा नहीं रहा,बदल गया हर –
अंदाज, तू छेड़ कोई नई राग अपने साज से

 

हुए हैं पाँव मेरे, नबर्दे-इश्क1 में जख्मी तू
उड़ा ले चल मुझे , अपने इश्के गुदाज2 से

 

फ़िर जिस रंग में चाहे रंग ले तू, खुद को
मेरे खिलवत- औ-अंजुमन3 के नियाज4 से

 

कहीं साहिल से लगकर मौजे बेताब सो जाये
एक बार फ़िर उठा दे परदा, तू उसी नाज़ से



1.प्यार के जंग 2.कोमल 3.एकांत मिलन
4.कामना

 

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