Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समन्दे-उम्र1 कहीं नहीं ठहरता

 

 

समन्दे-उम्र1 कहीं नहीं ठहरता
बुतखाने2 में भी ठहरता नहीं

 

हाल पीरी3 का जानता फ़िर भी
गोर4 के साँचे में ढ़लता नहीं

 

दम-ए आखिर तक दौड़ लगाता
दो टूक आराम करता नहीं

 

जिंदगी की राह में,कब और कहाँ
मिला,पूछने पर कुछ कहता नहीं

 

बोलता, ख़ुदा के घर जो हुआ
करार, क्यों उस पर तू रहता नहीं



1.उम्र का घोड़ा 2.मंदिर 3.बुढ़ापा 4.कब्र

 

डा० श्रीमती तारा सिंह

 

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