साया - ए -गुलेशाख की देख, डरता क्यूँ हूँ मैं
दो पल ठहरने से घबड़ाता क्यूँ हूँ मैं
यतीम दिल याद कर जिसे,रहता था सबदे गुल
पाकर उसे अपने करीब, रोता क्यूँ हूँ मैं
लाया है शौक मेरा, मुझे इस मयखाने में
इसी आस्तां पर गुजरेगी उम्र,सोचता क्यूँ हूँ मैं
बूते काफ़िर को पूजना, मजबूरी है मेरी
खल्क छोड़ न दे कहीं, सोचता क्यूँ हूँ मैं
जब रही न ताकतें, करवट फ़ेरने की, अब
तब उस सुख्न को पास बुलाता क्यूँ हूँ मैं
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