Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शहर में आकर, अपना गाँव भूल गये

 


शहर  में आकर, अपना  गाँव भूल गये

मम्मी  को  अपनाया,  माँ  भूल  गये


दादा-दादी  को भूल गये,नदिया किनारे

पीपल की  शीतल छाँव  भूल  गये


पावँपावँ  कर जिस आँगन  में चलना

सीखा,  अपना वह  ठाँव  भूल  गये


हेलो- हाय  के  चक्कर में, माता-पिता

गुरुजनों  का,  छूना  पावँ  भूल  गये


मेले में भटका हो कोई,तो ढूँढ़ भी लाये

हम तो स्वयं में भटककर,गाँव भूल गये


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