शामे –जिंदगी1 में और क्या काम है बाकी
सहर2होने को है, अल्ला का नाम ले साकी
इबादत में अब आने लगा है मौत का खटका
मेरी ईजा3 को मुरदे भी माँगते दुआ साकी
सब्र और तहम्मुल4 दो कोह5 थे, वे भी लगे
टूटने, तेरा गरूरे-हुस्न6 भी बदल गया है साकी
रूह7, कालिब8 में दो दिन का मेहमान था
गुलशने- दहर सराये -मातम9 नहीं होता साकी
कुछ भरोसा नहीं इस जिंदगी का,कब छोड़ दे साथ
रख ले खरीद के कफ़न ,दिन और नहीं रहा बाकी
रूह तन-मिट्टी में शरीक होता है, मंजिले-मुल्के10
अदम का ह्मसफ़र कोई नहीं होता साकी
1.बुढ़ापा 2.सुबह 3. कष्ट 4.संतोष और धैर्य 5.पहाड़ 6.जवानी का दम्भ 7.आत्मा 8.शरीर 9.रोने की जगह 10.अंतिम यात्रा
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY