Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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स्नेह मनुष्य का अमूल्य आभूषण है

 

स्नेह मनुष्य का अमूल्य आभूषण है 


मनुज अंधेरे में भी उगा रह सकता है , बनकर सूर्य समान 

अगर छोड़ दे यह सोचना, मॅं हूँ कौन  , तुम हो कौन 

धरती यूँ ही नहीं कहलाती माता, इसका है  बड़ा ही त्याग 

सारी सृष्टि एक प्रभु की सोच, सभी जीवों को रखती संभाल 

हम मनुज होकर भी, मनुजों पर करते आए हैंअत्याचार 

खड्ग , भाल, तलवार दिखाकर छीनते आए हैं उनके अधिकार 


हम यह नहीं सोचते हमारी कुकृतियों से, कौन हुआ हलाल

किसकी दुनिया लुट गई, किसका उजड़ गया संसार 

किसकी गोद सूनी हुई, किसका छिन गया आधार 

हम सिर्फ इतना सोचते हैं , इस दुनिया में नियति के बाद 

हो हमारी साख , तारे, नक्षत्र मेरी आज्ञा बिना नहीं धमके

रवि - शशि नमन करे, जलद खड़े रहे दोनों हाथ 


पर साधना की वाणी से निकलती है एक ही आवाज 

स्नेह मानव का अमूल्य आभूषण है, स्नेह है जीवन का सार 

इसलिए स्नेह को अपनाओ, स्नेह को बनाकर जीवन

का हथियार तुम भी चमक सकते हो इस दुनिया में

बनकर मानवता का स्वर्ण सोहाग क्योंकि व्यर्थ 

होता प्रभुता का अजय मद लहराता नहीं चिरकाल 

मिटा देता इसे काल, दुनिया छोड़ने के बाद 




अंकित है  इतिहासों में, अनेकों अभिमानियों की कथा

जिसने भी किया , निरीहों के आँसू से , अपने रोग का इलाज 

जीवन पर्यंत पछताया, जीतकर भी जीत न सका जीतका प्रसाद 

अपने ही तन का बुद्धि-अनल, लगाकर आग उड़ाता था उपहास


रुधिराक्त विजय मुकुट ,दिया न कभी उसको सोने, उठ- उठकर 

मरघट से आती रही मिलने एक के बाद एक लाश 

क्षत - विक्षत मानव के अंग, तिमिर कक्ष में मचाते रहे कोलाहल 

स्नेह कहा जी भर देख लो राजन आज , रुंड - मुडों का नाच 

कौन जाने कल तुम्हारे भी लहू से कोई और  करे स्नान 


मनुज छोड़ क्यों नहीं देता, दो दिनों की जिंदगी में

यह सोचना कि मॅं हूँ कौन  , तुम हो कौन 

बल्कि ईश्वर से कर विनती, माँगे ऐसा वरदान 

कि सारा जग अपना - सा लागे, कोई रहे न दुश्मन 

पशु - पक्षियों से भी प्यार कर सके निज पुत्र - सा

जिससे आत्मसात हो यह संसार , सफल हो जीवन   


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