Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तपोभूमि

 

तपोभूमि



अपनीही  सत्ता से निर्मित

तीनो कालों से  अधिकृत

अमित सागर सा फ़ैला हुआ

ऋषि – मुनियों की तपोभूमि

आज भी,स्वर्ग पंक्ति में खड़ी

भारतके  भू  पर है स्थित


जिसके  रज –कण  से  लोट –लिपट

युगों  से  कुसुमित रहा  है हिमतट

जिसके   पावन सोपानों  पर  पग

रखकर  स्वयं  चैतन्य संचरण किये

जिनकी महिमा से आभा का रसस्रोत

फ़ूटते खुलते  स्वर्ग के  स्वर्ण-पट


जहाँ पहुँचकरमानव की आत्मा

नव – नवप्राणों  से होती स्पंदित

भावोंसा प्रकाश बरसताऋषि-

मुनियों की सुनाई पड़ती अमरवाणी


जो  हमें बताताजीवन ही कल

मृत्यु  बनेगाऔर मृत्यु जीवन

यही सत्य है,यही है,बंधनविहीन 

प्रकृति के परिवर्तन का आकर्षण

यही  मर्त्य जीवन की है कहानी



इससे रवि-शशि-तारे,कोई नहीं बच सके

फ़िरहम  क्यों करें,यह बोलकर क्रंदन

जिन्दगीउषा  का पटरवि  को छीन

तुम्हारेपथ  पर  हमविछा सके

विश्वबाग  में  थेअनेकों फ़ूल खिले

एक फ़ूल तुमको तोड़कर हम दे  सके


जब  कि  हम भलीभाँति यह जानते

पंचतंत्र  से  बना मानव  कामेरु

देवों  के  शुभ्रप्रकाश  से है मंडित

जो  अभी  हैअभी  लुप्तहो गया

बुझ  रहे  दीयेकी  सी  है स्थिति

फ़िर क्यों शोक मनायें हम जीवन के

मिट  जाने  काक्यों करें हम घुटने 

टेककर काल से छोड़ देने की विनती

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