Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तेरा आँचल पकड़कर कब तक सरकता रहूँ मैं

 

तेरा  आँचल  पकड़कर  कब  तक  सरकता  रहूँ मैं

लहरों  बीच  खिला  कमल  देख  तड़पता  रहूँ  मैं


एक  तो  नश-ए-मय, उस  पर  नशीली  आँखें तेरी

इस  जुल्मते-जहाँ1  में  कब  तक  सिसकता रहूँ मैं


उम्र  गुजर  गई तेरे कूचे-ए-गेसू2की जुस्तजू3 में,और

कब  तक  तेरे दिल में दिल बनकर, धड़कता रहूँ मैं


सहरा4 में  कोई  दीवार  भी  तो  नहीं  होता,जिसे 

पकड़कर अपनी रेजी-मुहब्बत5का समर देखता रहूँ मैं


तेरी  बेरुखी  ने  पलट  दी  मेरे  इश्क  की काया

अपने  बे-सरा-पाअश्क को कब तक बाँधता रहूँ मैं



1. अंधेरी दुनिया 2. जुल्फ़़ की गली 3. तलाश

4. मरुभूमि 5.असफ़ल प्रेम 6.बिना सर-पैर का



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