मेरे सीने में दर्द जब पाया राहत
तब मिट गई वस्ल1 की हर चाहत
फ़ुर्सते-हस्ती2 का गम नहीं मुझको
उम्रे अजीज का क्यों करूँ इबादत
मुझसे उसकी कोई दुश्मनी नहीं,क्यों
वह, किसी और से करे मुहब्बत
तेग-बे-आब3 है वह, मरने के पहले
कब दिया किसी को खुद से फ़ुर्सत
बस एक बात है उसमें बुरी,सफ़रे-इश्क
में भी, जगाने की है उसको आदत
1.दुनिया 2.जीवन अवसान 3.बिना धार का तलवार
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