Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तेरी जुल्फ़ों के साये में, पसीना आ गया

 

तेरी   जुल्फ़ों   के   साये   में, पसीना  आ  गया

इश्क  का  हौसला  शर्त  है, शर्त पर जीना आ गया


बख्त1 से  शिकायत करूँ, मुझमें वो ताकतें रहीं कहाँ

पहले   गम   खाता   था , अब  पीना  आ  गया


छूटूँगा  जिश्त2 के फ़ंदे से कब ,किस दिन और कहाँ

जनाज़ा उठायेगा कौन, ख़ुदा से पूछने मदीना आ गया


कहूँ तो क्या कहूँ,किसकी  तिरछी निगाह,मेरे सीने को

छलनी किये रखती थी,उस पर दिल कमीना आ गया


बेसब्र, बे-इख्तियार  दिल, पहले  बात-बात  पर रहता

था  कराहता, मगर अब  उसे दर्द को सीना आ गया



  1. काल  2. जीवन

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