Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम बिन जीना चाहा, जी भी न सका

 

तुम  बिन  जीना  चाहा, जी भी  न सका

मरना  चाहा तो  मर   भी  न  सका


ऐसे  नज़रों  को  क्या कहें, जिसका साथ

हर  पल  मिला, उसे पहचान  भी न सका


जमाना  बुरा    या  मैं बुरा, कौन  भला

कौन  बुरा, खुद  को  समझा  भी न सका


जो  मिली, उससे  मोहब्बत  कर  न सका

जिसे चाहा, उसे  बता  भी न सका


हर  एक  अज़नबी  से  उसका  पता पूछा

अपने घर का पता किसी को दे भी न सका

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