Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम बिन जाऊँ तो कहाँ जाऊँ

 

तुम    बिन   जाऊँ  तो  कहाँ  जाऊँ

नसीमे1 जहाँ  है  खिजा2   कहाँ  जाऊँ


सुनता नहीं वक्त ,बयाने गम किसी का

किसको  अपनी  फ़ुरकते3 दास्तां सुनाऊँ


इन्सां,   इन्सां   का  कद्र  भूल   गये

दिल   को  जिगर  से  कहाँ  मिलवाऊँ


खीच  लाया  जल्वा-ए-दिल मुझको यहाँ

मैं  कब चाहा तुम दोनों के दरम्यां आऊँ


एक मिट्टी के पैकर4 में निहाँ5 जिंदगी,इसे 

लेकर  जमीं  पर  रहूँ  या आसमां जाऊँ




1-2. दुनिया रूपी गुलशन में काँटे भरे हैं

3. वियोग 4. चेहरा  5. छिपा हुआ

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हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ